डर तो केवल धूप का है,
धूप में ही तो ये डर पैदा हुआ है
स्वप्न जो मैंने बुने हैं
बारिशों में धुल न जाएँ
इस चमकती धूप में
बादल कहीं आ घुल न जाएँ
जब हुई बरसात डर तो पल में ही हवा हुआ है
फकीरों को डर कहाँ है
डर तो केवल भूप का है
डर तो केवल धूप का है
बादलों का डर कहाँ है...
डर तो केवल धूप का है
ReplyDeleteबादलों का डर कहाँ है..
khubsurat ahsas,badhai
achcha likha hai !! :)
ReplyDeleteDil ki baat:)
ReplyDeletesabko bahot bahot dhanyavaad.. dekha hi nahin tha ki comments bhi aaye hain. Thanks. :)
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