बड़े होते हैं
नन्हीं पलकों के ख़्वाब।
दूर ही सही,
उन्हें साफ़ दिखाई देते हैं।
वो दबाये रखती हैं दिल में
लंबे हौसलों की डोर,
और ढूंढ़ती रहती हैं
छोटी सी उम्मीद की सीढ़ी,
जो उठा दे उन्हें
ज़मीन से थोड़ा सा ऊपर,
तो उछाल दें
मौके का कोई पत्थर।
डोर से बांध के
अटका भर दें ख़्वाब से,
तो हौसला रस्सी हो जाए,
और ख़्वाब खिलौना।
आओ,
तुम भी किसी की सीढ़ी हो जाओ।
Sunday, February 19, 2017
Monday, February 13, 2017
Wednesday, February 8, 2017
नज़रिया
मैं
देखना चाहता हूँ
सबको
वैसा ही
जैसा मैं हूँ
अंदर।
मैं
देखना चाहता हूँ
खुद को
वैसा ही
जैसे सब हैं
बाहर।
देखना चाहता हूँ
सबको
वैसा ही
जैसा मैं हूँ
अंदर।
मैं
देखना चाहता हूँ
खुद को
वैसा ही
जैसे सब हैं
बाहर।
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